2025की पहली तिमाही में भारत का निर्यात प्रदर्शन रहा शानदा
2025 में भारत-अमेरिका व्यापार के बीच प्रस्तावित व्यापार वार्ता का रद्द होना केवल एक कूटनीतिक घटना नहीं, बल्कि एक वैश्विक शक्ति संतुलन की झलक है। यह उस दौर की कहानी है जहां व्यापार समझौते सिर्फ आर्थिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव, ऊर्जा नीति और राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए भी लड़े जाते हैं।

वार्ता क्यों हुई रद्द?
भारत और अमेरिका के बीच छठे दौर की व्यापार वार्ता 25 अगस्त से दिल्ली में प्रस्तावित थी। लेकिन अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने अचानक अपनी यात्रा स्थगित कर दी। इसके पीछे तीन प्रमुख कारण सामने आए:
अमेरिका द्वारा टैरिफ वृद्धि:
• 7 अगस्त से भारत के उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाया गया।
• 27 अगस्त से यह बढ़कर 50% तक पहुंचने वाला है।
• अमेरिका चाहता है कि भारत कृषि और डेरी सेक्टर में अमेरिकी कंपनियों को अधिक पहुंच दे।
रूस से तेल आयात:
भारत ने रूस से ऊर्जा, रक्षा और कृषि क्षेत्र में रणनीतिक खरीद को बढ़ाया है—जिसमें सस्ता तेल भी शामिल है—और यही बात अमेरिका को खटक रही है। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए ताकि उसकी युद्धकालीन अर्थव्यवस्था कमजोर हो, लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि उसकी नीति राष्ट्रीय हितों पर आधारित है, न कि बाहरी दबाव पर |
• ट्रंप प्रशासन ने भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने का कारण यही बताया।
• ट्रंप-पुतिन मीटिंग का प्रभाव:
• 15 अगस्त को ट्रंप और पुतिन की मुलाकात अलास्का में हुई।
• इस मीटिंग में रूस ने अमेरिका को कुछ रणनीतिक रियायतें दीं।
इसके बाद अमेरिका ने भारत पर दबाव बढ़ा दिया, खासकर तेल और सैन्य उपकरणों की खरीद को लेकर।
भारत का जवाब: आत्मसम्मान से समझौता नहीं
भारत ने अमेरिका के टैरिफ फैसले को “अनुचित, अन्यायपूर्ण और बेबुनियाद” बताया। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि:
• भारत की ऊर्जा नीति जनसंख्या की बढ़ती मांग, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है
• यूरोपीय देश भी रूस से अधिक तेल खरीद रहे हैं, फिर भारत को क्यों निशाना बनाया जाए?
• भारत अपने कृषि और डेरी सेक्टर को विदेशी दबाव में नहीं खोलेगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर कहा, “भारत अब समझौतों की मेज़ पर झुकता नहीं, वह अपने आत्मसम्मान के साथ खड़ा होता है।”
भारत-अमेरिका व्यापार व्यापारिक असर
2025 की पहली तिमाही में भारत-अमेरिका व्यापार ने $33.53 अरब के निर्यात के साथ 21.64% की वृद्धि दर्ज की—यह संकेत है कि भारत की निर्यात रणनीति वैश्विक मांगों के अनुरूप सटीक रूप से काम कर रही है।
• आयात 12.33% बढ़कर $17.41 अरब रहा।
• अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा, लेकिन टैरिफ वृद्धि से टेक्सटाइल, फार्मा और ऑटो सेक्टर पर असर पड़ सकता है।
वैश्विक समीकरण
यह वार्ता रद्द होना केवल भारत-अमेरिका संबंधों का मामला नहीं, बल्कि एक वैश्विक संदेश है:
• भारत-अमेरिका व्यापार अब व्यापार को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है।
• ट्रंप की नीति में व्यापार, सुरक्षा और भू-राजनीति का घालमेल स्पष्ट है।
• भारत को अब बहुपक्षीय सहयोग और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
भारत की आवाज: विवेकानंद की दृष्टि, भगत सिंह की ज्वाला, और कलाम की दूरदृष्टि
यह भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता सिर्फ व्यापार की नहीं, बल्कि भारत की वैचारिक दृढ़ता की परीक्षा है। जब अमेरिका दबाव बनाता है, भारत संविधान, संस्कृति और स्वाभिमान की रोशनी में निर्णय लेता है। यह वही भारत है जो कहता है:
“हम समझौते करेंगे, लेकिन अपने आत्मसम्मान की कीमत पर नहीं।”
निष्कर्ष
भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता का रद्द होना एक चेतावनी है—कि राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए कभी-कभी टकराव भी ज़रूरी होता है। भारत ने दिखा दिया है कि वह वैश्विक दबावों के सामने झुकने वाला नहीं, बल्कि नीति निर्माता बनने की राह पर है।
यह घटना हमें यह सिखाती है कि व्यापार केवल लाभ का खेल नहीं, बल्कि नैतिकता, रणनीति और आत्मबल का भी परिचायक है। भारत अब उस मोड़ पर है जहां वह न केवल वार्ता करता है, बल्कि शर्तें तय करने की क्षमता भी रखता है।


